Book Details
Book Name | Aarti Sangrah PDF |
Source/Credits |
Multiple Sources |
Language | Hindi |
PDF Size | 9 MB |
No of Pages |
125 |
Aarti Sangrah PDF (आरती संग्रह PDF)
दोस्तों नमस्ते, आप सबको एक नए पोस्ट aarti sangrah pdf में हार्दिक स्वागत है ।
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दोस्तों हम पूजा पाठ के बाद अपने भगबान की आरती उतारते हैं तो दरसल हम उनकी नजर भी उतार रहे होते हैं । ये बात सुनने में कितना अजीब लग रहाहै ना की कोई भगबन की नजर केसे उतार सकते है, तो हम जब घी से दूध से पानी से नहला सकते हैं तो हम दीपक की ज्योति से उनकी नजर क्यूँ नहीं उतार सकते । बिल्कुल उतार सकते हैं और हम उतार ते भी हैं । इसके पीछे हे एक दिलचासव बयाख्या, आईए आज हम जानते हैं ।
हर चीज को साफ करने क लिए पनि का इस्तेमाल होता है । पनि हर चीज को सुध करता है, पनि हर गंदगी को निकाल सकते है जो हमे अपनी आँखों से दिखती है, लेकिन जो गंदगी जो मेल जो नकारात्मकता हमे अपनी आँखों से दिहाई नहीं पड़ती उसे केसे हटाया जाए केसे सुदह किया जाए?
जब हम अपने भगबान की आरती उतारते हैं तब हम ज्योति से उनका स्नान कर रहे होते हैं, पूजा पाठ क दौरान देबता को दूध,दही,सहद,चीनी,जल आदि चीजों से स्नान कराया ही जाता है लेकिन अंतिम और महत्वपूर्ण स्नान आरती के द्वारा होता है । हमारा सरीर energy receive करता है तो energy transmit भी करता है । energy positive भी होती है और negative भी होती है।
भगबान या ईस्वर सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत हैं, पूजा पाठ के दौरान कइबार हमारी नकारात्मक ऊर्जा हमारे सरीर से निकाल कर बीच में खड़ी हो जाती है, उसी नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए हम अपने और भगबान के बीच में दीपक की ज्योति को आरती की तरह घूमाते हैं, ताकि हमारा शरीर उनकी सकारात्मक ऊर्जा को अछि तरह से receive कर सके बीच की ये बाधा मीट जाए।
पूजा और आरती का क्या महत्व होता है
दोस्तों पूजा को नित्य कर्म में सामील कियागया है, पूजा में सभी देबताओं की स्तुति किया जाता है। पूजा में आरती के भी नियम हैं । नियम से पूजा करने से ज्यादा लाभ होता है। पूजा करने के पश्चात अंत में आरती किया जाता है। और आरती अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है समस्त नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए। अगर पूजा में कोई कमी रह जाए तो आरती से उसकी पूर्ति की जाती है।
स्कन्दपुराण में कहा गया है-
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरेः ।
सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे ॥
अर्थात- पूजन मन्त्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमे सारी पूर्णता आ जाती है
वैदिक आरती
ॐ ये देवासो दिव्येकादश स्थ
पृथिव्यामध्येकादश स्थ ।
अप्सुक्षितो महिनैकादश स्थ ।
ते देवासो यज्ञमिमं जुषध्वम् ॥
ॐ आ रात्रि पार्थिव थं रजः
पितुरप्रायि धामभिः।
दिवः सदांसि बृहती वि
तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तमः ॥
ॐ इदथं हविः प्रजननं मे अस्तु
दशवीर ॐ सर्वगण थं स्वस्तये ।
आत्मसनि प्रजासनि पशु-
सनि लोकसन्यभयसनि ।
अग्निः प्रजां बहुलां मे करोत्वन्नं
पयो रेतो अस्मासु धत्त ॥
समस्त देबताओ के लिए उनके स्वतंत्र आरती का संग्रह है उनमेसे कुछ को हमने इधर सामील किया हुआ है जेसे की-
श्री गणपती जी की आरती (Ganpati Aarti)
सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची |
नुरवी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची |
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची |
कंठी झळके माळ मुक्ताफळाची || १ ||
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती |
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती ||
रत्नखचित फरा तूज गौरीकुमरा |
चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा |
हिरे जडित मुकुट शोभतो बरा |
रुणझुणती नुपुरे चरणी घागरिया || 2 ||
लंबोदर पितांबर फनी वरवंदना |
सरळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना |
दास रामाचा वाट पाहे सदना |
संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवंदना |
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती |
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती || ३ ||
श्री जगदीश जी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
श्री कुंज बिहारी की आरती: हिंदी
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली;भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक;ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै;बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग;अतुल रति गोप कुमारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा;बसी सिव सीस, जटा के बीच,
हरै अघ कीच;चरन छवि श्रीबनवारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद,
कटत भव फंद;टेर सुन दीन भिखारी की ॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
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निष्कर्ष
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